फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने शुक्रवार को घोषणा की कि उनकी सरकार आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र में फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देगी। यह फैसला फ्रांस को पहला G7 देश बना देगा जो फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता देगा।
क्या है पूरा मामला?
मैक्रों ने पेरिस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अब समय आ गया है कि दुनिया दो-राष्ट्र समाधान को फिर से मजबूती से आगे बढ़ाए।
“मान्यता देना इनाम नहीं, एक राजनीतिक ज़िम्मेदारी है,” – मैक्रों।
इस फैसले की इसराइल ने कड़ी आलोचना की है और इसे “आतंकवाद को इनाम” बताया है। वहीं अमेरिका ने भी इसे शांति प्रक्रिया के लिए नुकसानदायक कहा है।
भारत के लिए क्यों मायने रखता है ये फैसला?
भारत दशकों से फिलिस्तीन के अधिकारों का समर्थन करता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में इसराइल से संबंध भी काफी मजबूत हुए हैं। ऐसे में फ्रांस का यह कदम भारत को एक साफ रुख अपनाने के लिए मजबूर कर सकता है।
- भारत की नीति पारंपरिक रूप से संतुलित रही है – न तो फिलिस्तीन से दूरी बनाई गई है, और न ही इसराइल से रिश्तों में कोई रुकावट रखी गई है।
- फिलहाल भारत ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपनी मौजूदा नीति पर ही कायम रहेगा — “दोनों पक्षों के साथ संवाद बनाए रखना।”
आगे क्या?
फ्रांस सितंबर 2025 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में आधिकारिक प्रस्ताव लाने वाला है।
पिछले कुछ महीनों में नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन जैसे देशों ने भी फिलिस्तीन को मान्यता दी है।
अगर और भी यूरोपीय देश फ्रांस के साथ आते हैं, तो यह भारत समेत बाकी देशों पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा सकता है।
फ्रांस के इस ऐलान ने मध्य पूर्व की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत आने वाले समय में किस तरह संतुलन बनाए रखता है — खासतौर पर तब, जब फिलिस्तीन और इसराइल दोनों ही भारत के रणनीतिक साझेदार हैं।
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