The Hidden War Inside Married Life!
शादी की मिठास के पीछे छुपा कड़वापन अक्सर रिश्तों की शुरुआत में ही सामने आने लगता है। हमारे देश में नवविवाहित जोड़ों के बीच अक्सर बहस के मुद्दे पारिवारिक जिम्मेदारियों, बच्चों की परवरिश, ससुराल से तालमेल या खर्चों को लेकर होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन सभी के पीछे एक ऐसा संघर्ष छुपा है जो हमारे शरीर और जीन के स्तर पर चल रहा है?
प्लेसेंटा पर संघर्ष: एक छुपी हुई जंग
जब एक भारतीय महिला गर्भवती होती है, तो अक्सर घर की बुजुर्ग महिलाएं उसे पौष्टिक आहार देने की सलाह देती हैं ताकि बच्चा स्वस्थ हो। लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक, उस समय उसके शरीर में एक तरह का ‘जैविक संग्राम’ चल रहा होता है — माँ और अजन्मे बच्चे (जिसमें पिता के जीन भी होते हैं) के बीच। पिता से मिले कुछ जीन प्लेसेंटा को माँ के शरीर से अधिक से अधिक संसाधन खींचने के लिए प्रेरित करते हैं, जबकि माँ के जीन इस प्रक्रिया को सीमित करना चाहते हैं ताकि उसका खुद का शरीर सुरक्षित रह सके और भविष्य में भी वह गर्भधारण कर सके।
भारतीय परिवारों में ‘त्यागमयी माँ’ की छवि बनाम विज्ञान
हम भारतीय संस्कृति में माँ को त्याग की मूर्ति मानते हैं। लेकिन विज्ञान यह कहता है कि माँ की प्रवृत्ति भी अपने शरीर और भविष्य की संतानों की रक्षा करने की होती है। उदाहरण के तौर पर, स्तनपान के दौरान महिला का शरीर अगला ओवुलेशन रोक देता है — यानी एक बच्चे के बाद महिला तुरंत अगला गर्भ नहीं ठहराना चाहती। यह एक जैविक प्रणाली है, जिसमें माँ अपने शरीर को दोबारा स्वस्थ करना चाहती है।
विकासवादी संघर्ष: सिर्फ इंसानों की बात नहीं
यह संघर्ष सिर्फ हमारे समाज तक सीमित नहीं है। फल मक्खियों से लेकर चूहों तक, हर प्रजाति में नर और मादा के बीच प्रजनन और संसाधनों को लेकर एक अंतर्निहित खींचातानी होती है। उदाहरण के लिए, नर फल मक्खियाँ ऐसा वीर्य द्रव उत्पन्न करती हैं जो दूसरे नरों के शुक्राणु को नष्ट कर देता है — लेकिन वह मादा के स्वास्थ्य के लिए विषैला होता है। मनुष्यों में यह संघर्ष और अधिक जटिल रूप ले लेता है।
‘जीन इम्प्रिंटिंग’: माँ-पिता के जीन की अदृश्य लड़ाई
भारतीय स्कूलों में आपने मेंडल के सिद्धांत पढ़े होंगे, जहां यह सिखाया गया कि माता-पिता से मिले जीन मिलकर संतान के लक्षण तय करते हैं। लेकिन नई रिसर्च कहती है कि ‘मुद्रित जीन’ (imprinted genes) के मामले में केवल एक जीन सक्रिय होता है — या तो माँ का या पिता का। और यहां से शुरू होती है असली खींचातानी।
पिता से मिले जीन संतान को जल्दी और अधिक विकसित करने की कोशिश करते हैं — चाहे माँ की जान पर क्यों न बन आए। वहीं, माँ के जीन इस गति को थामने की कोशिश करते हैं ताकि वह खुद जीवित रह सके और भविष्य में भी गर्भवती हो सके।
मस्तिष्क की लड़ाई: कौन तय करता है बुद्धि और शरीर का संतुलन?
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि माँ से मिले जीन मस्तिष्क के कॉर्टेक्स (बुद्धिमत्ता) के विकास को बढ़ावा देते हैं, जबकि पिता के जीन हाइपोथैलेमस (भूख, प्यास, प्रजनन जैसी मूल प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने वाला हिस्सा) को बढ़ाते हैं। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि माँ चाहती है कि बच्चा तेज़ दिमाग वाला हो, जबकि पिता का जीन उसे ज्यादा संसाधन खींचने वाला बनाता है।
क्या एकविवाह (Monogamy) भारतीय समाज में सचमुच है?
हालांकि भारत एक पारंपरिक, एकविवाह-प्रधान समाज माना जाता है, लेकिन इतिहास, लोककथाओं और यहां तक कि आधुनिक डीएनए परीक्षण यह बताते हैं कि हमारे समाज में भी जोड़ी के बाहर संबंधों की घटनाएं आम रही हैं। फिर भी, एकविवाह की सामाजिक संरचना ने मानव शरीर और मन में मौजूद “जैविक युद्ध” को पूरी तरह रोका नहीं है।
क्या समाधान है? विज्ञान का संकेत
एक प्रयोग में वैज्ञानिकों ने फल मक्खियों को एकपत्नीत्व के लिए मजबूर किया — यानी वे जीवनभर एक ही साथी के साथ रहे। नतीजा? नर मक्खियों ने जहरीले शुक्राणु बनाना बंद कर दिया और उनके व्यवहार में भी नरमी आई। सोचिए, अगर इंसानों में ऐसा किया जाए — एक हजार वर्षों तक सबको पूरी निष्ठा से एक ही साथी के साथ रहने को कहा जाए — तो शायद हमारे भीतर के कुछ जैविक संघर्ष खुद ही मिटने लगें!
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हम भारतीयों के लिए रिश्ते सिर्फ भावनाओं का मामला नहीं होते, वे सामाजिक जिम्मेदारियों, परंपराओं और अब — जैसा कि विज्ञान कहता है — जीन स्तर पर भी संघर्षों से भरे होते हैं। लेकिन इस ज्ञान से हमें डरने की नहीं, समझने की जरूरत है। रिश्तों में मौजूद इन अदृश्य खींचातानियों को पहचानकर हम अधिक सहानुभूतिपूर्ण और स्थायी संबंध बना सकते हैं। हमें याद रखना चाहिए — ये लड़ाइयाँ हमारे अवचेतन में होती हैं, न कि दिल में। और जहाँ समझ होती है, वहीं शांति का रास्ता निकलता है।
– by Team KhabreeAdda.in





