Pathankot: From Pride of Punjab to a City in Decline
कभी समृद्धि और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध पठानकोट आज सुविधाओं की कमी और सरकारी उपेक्षा के कारण विकास से कोसों दूर है। जानिए इस शहर की कहानी।
पठानकोट, पंजाब – स्वतंत्रता से पहले और 1990 के दशक तक, पठानकोट को पंजाब की शान माना जाता था। लकड़ी, ट्रांसपोर्ट और टूरिज़्म यानी “तीन टी” के कारण यह शहर आर्थिक रूप से संपन्न था। नई कारों में घूमने से लेकर बच्चों को पहाड़ों में पढ़ाने तक, यहां के लोग अपनी तरक्की के लिए जाने जाते थे। लेकिन आज, वही पठानकोट बदहाली की गिरफ्त में है।
राष्ट्रीय राजमार्ग बना विकास में बाधा
जालंधर-पठानकोट-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग बनने से पहले, पर्यटक हिमाचल या जम्मू-कश्मीर जाते समय पठानकोट में रुकते थे। लेकिन अब सीधे रास्ते से वे बिना शहर में रुके आगे निकल जाते हैं। नतीजा, करीब 70 होटल जो कभी सालभर व्यस्त रहते थे, अब घाटे में चल रहे हैं।
बुनियादी सुविधाओं की कमी
शहर में सुविधाएं न के बराबर हैं। न पार्किंग की व्यवस्था, न ट्रैफिक लाइट्स, और न ही सही यातायात प्रबंधन। ई-रिक्शा की बाढ़, अव्यवस्थित सड़कों और बढ़ते जाम ने शहर की हालत और खराब कर दी है। यहां तक कि बुजुर्ग, जो पहले यहां रिटायरमेंट बिताना चाहते थे, अब जम्मू या हिमाचल जाना पसंद करते हैं।
रेलवे क्रॉसिंग और चक्की पुल की समस्या
जोगिंदर नगर-पठानकोट नैरोगेज लाइन पर कई रेलवे क्रॉसिंग हैं। चक्की पुल के पुनर्निर्माण के कारण टॉय ट्रेन बंद है, जिससे फिलहाल फाटक नहीं बंद होते। लेकिन यह राहत अस्थायी है। पुल दोबारा चालू होते ही ट्रैफिक जाम की समस्या लौट आएगी।
होटल और पर्यटन उद्योग को लगा झटका
एक समय होटल व्यवसाय खूब फल-फूल रहा था। होटल व्यवसायियों के अनुसार, “हर छह महीने में नई कार खरीदते थे, बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते थे। अब होटल का कारोबार ठप हो गया है।” पर्यटन स्थलों जैसे मुक्तेश्वर धाम, शाहपुरकंडी, माधोपुर, और पारियां वाला बाग में अब न तो विदेशी पर्यटक आते हैं, न ही घरेलू।
ट्रैफिक, पार्किंग और नियोजन का अभाव
शहर में ट्रैफिक का कोई ठोस नियोजन नहीं है। पार्किंग न होने से सड़कें संकरी हो गई हैं और वाहन गलत तरीके से चलते हैं। “पैदल चलना ही बेहतर”—यह अब लोगों का नारा बन गया है।
रेलवे रोड का स्वर्ण युग
70 के दशक में रेलवे रोड पर 24 घंटे दुकानें खुली रहती थीं। दिल्ली से पठानकोट और फिर आगे बसों से जम्मू जाने वाले यात्री यहां समय बिताते थे। 1975 में पठानकोट-जम्मू रेलवे लाइन बनने से चीजें बदल गईं।
उम्मीद अब भी ज़िंदा है
स्थानीय प्रशासन और नगर परिषद यदि ठोस कदम उठाए—पार्किंग स्थल बनाएं, ट्रैफिक व्यवस्था सुधारें, और पर्यटन स्थलों का प्रचार करें—तो हालात सुधर सकते हैं। रोज़ाना लगभग एक लाख वाहन इस शहर से गुजरते हैं, जिनमें सेना, वीआईपी काफिले, एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड शामिल हैं। यह शहर आज भी एक रणनीतिक और व्यावसायिक रूप से अहम स्थान है।
पठानकोट का इतिहास और विशेषताएं
विभाजन के समय: पठानकोट को पहले पाकिस्तान में शामिल किया जाना था, लेकिन बाद में इसे भारत में रखा गया।
लीची उत्पादन: यहां की मिट्टी लीची की खेती के लिए अनुकूल है और यह फल भारत के अलावा विदेशों में भी निर्यात होता है।
पठानकोट की पुरानी चमक लौट सकती है — जरूरत है एक समर्पित विकास योजना की, बुनियादी ढांचे में निवेश की, और पर्यटन को दोबारा सक्रिय करने की। अगर समय रहते सही कदम उठाए जाएं, तो यह शहर फिर से पंजाब का गर्व बन सकता है।
– by Team KhabreeAdda.in





